बेगूसराय/बरौनी: बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली एक बार फिर इंसानियत पर भारी पड़ी। इस बार कीमत चुकानी पड़ी एक नवजात को — जिसने जन्म तो लिया, पर जी नहीं सका। वजह? अस्पताल में वक्त पर इलाज नहीं मिला, लेकिन पैसों की मांग जरूर कर दी गई।
‘बेटी ने बेटे को जन्म दिया था… सब खुश थे… फिर अचानक सब बदल गया’
बरौनी के CHC में मोसादपुर गांव की मधु कुमारी को प्रसव पीड़ा के बाद भर्ती कराया गया था। सबकुछ सामान्य था, मधु ने बेटे को जन्म दिया। परिवार खुशी मना ही रहा था कि कुछ ही देर में नवजात की तबीयत बिगड़ने लगी।
‘इलाज करो’ की गुहार, लेकिन स्टाफ की जुबां पर था बस ‘पैसे दो’
परिजन कहते हैं कि उन्होंने नर्स और स्टाफ से लगातार मदद की गुहार लगाई। मगर किसी ने इलाज शुरू नहीं किया। उल्टा कहा गया — “पहले पैसे दो।” हालत बिगड़ती रही, लेकिन बच्चे को न रेफर किया गया, न सही इलाज मिला।
बच्चे की मौत और अस्पताल से भागते लोग
जब बच्चे ने दम तोड़ा, तो परिजन फूट-फूटकर रोने लगे और गुस्से में अस्पताल परिसर में हंगामा कर दिया। इस बीच अस्पताल में तैनात स्टाफ, नर्स और अन्य कर्मी सबकुछ छोड़कर फरार हो गए। ऐसा लगा जैसे उन्हें खुद भी पता था कि उन्होंने क्या किया है।
पुलिस पहुंची, परिजन मांग रहे इंसाफ
सूचना मिलते ही बरौनी थाना पुलिस अस्पताल पहुंची और स्थिति को संभाला। परिजनों की मांग है कि लापरवाही बरतने वाले स्टाफ पर कड़ी कार्रवाई की जाए और उनके खिलाफ केस दर्ज हो।
एक सवाल जो अब भी कायम है:
क्या बिहार के सरकारी अस्पतालों में इलाज अब ‘पैसों’ से पहले नहीं होगा?