बिहार के मुखिया को बड़ी सौगात: अब 15 लाख तक की योजनाएं करा सकेंगे बिना ठेके के

 


चुनाव से पहले नीतीश सरकार का बड़ा फैसला, पंचायतों को मिली नई ताक़त


बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश सरकार ने पंचायत प्रतिनिधियों को एक बड़ा अधिकार सौंपा है। अब ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद के प्रतिनिधि 15 लाख रुपये तक की विकास योजनाओं को बिना निविदा प्रक्रिया के, विभागीय स्तर पर पूरा करा सकेंगे। इस फैसले का उद्देश्य योजनाओं को तेजी से, पारदर्शी और कम खर्च में लागू करना है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में 12 जून को हुई त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रतिनिधियों की बैठक में यह निर्णय लिया गया, जिसकी पुष्टि मुख्य सचिव अमृतलाल मीणा ने की है। उन्होंने बताया कि यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है और सभी जिला परिषदों को इसकी जानकारी भेज दी गई है।


क्यों लिया गया यह फैसला?

पंचायती राज संस्थाओं की ओर से लंबे समय से यह मांग उठाई जा रही थी कि:

  • 15 लाख तक की योजनाओं पर टेंडर प्रक्रिया में देरी होती है।

  • कॉन्ट्रैक्टर के लाभ (contractor profit) के कारण योजनाओं की लागत बढ़ जाती है।

  • ग्रामीण इलाकों में निविदा निष्पादन के लिए मानवबल की कमी है।

इन तमाम व्यावहारिक समस्याओं को देखते हुए सरकार ने विभागीय क्रियान्वयन को मंजूरी दी है।


कहां से आती है यह राशि?

ग्रामीण विकास के लिए पंचायतों को कई स्रोतों से पैसा मिलता है, जैसे:

  • 15वां वित्त आयोग

  • राज्य वित्त आयोग

  • आरजीएसए (Rural Governance Strengthening) मद

इन राशियों को PFMS (Public Financial Management System) और CFMS (Comprehensive Financial Management System) के माध्यम से ट्रांसफर किया जाता है।


इस फैसले का असर क्या होगा?

  • योजनाओं का समय पर क्रियान्वयन संभव होगा।

  • ठेकेदारों की भूमिका कम होगी, जिससे भ्रष्टाचार की संभावना घटेगी।

  • संसाधनों का बेहतर और इष्टतम उपयोग किया जा सकेगा।

  • पंचायतों की जवाबदेही और प्रभावशीलता बढ़ेगी।


चुनावी नजरिए से भी अहम

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला चुनावी वर्ष में ग्रामीण वोटरों को साधने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है। इससे पंचायत प्रतिनिधियों की भूमिका और सशक्त होगी, जो गांव-गांव में सरकार की पहुंच को मजबूत करेगा।